Swati Sharma

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लेखनी कहानी -07-Nov-2022 हमारी शुभकामनाएं (भाग -29)

हमारी शुभकामनाएं:-

विदाई रस्म:-

                  राजा- महाराजा, अपनी बेटियों और राजकुमारियों को अन्य देशों के राजकुमारों या राजाओं को 'पुरस्कार' के रूप में दिया जाता था। शांति, संधि या आत्मसमर्पण के मामले में बेटियों को उपहार के रूप में 'प्रस्तावित' किया जाता था। यहीं से विदाई रस्म की शुरुआत हुई थी।
                  समय के साथ-साथ विदाई समारोह विकसित हुआ। इस रस्म में "सहमति" और "प्रेम विवाह" जैसे शब्द अस्तित्व में आए। लेकिन मूल रस्म अभी भी बनी हुई है, जहां पिता अपनी बेटी को उसके पति को सौंप देता है। विदाई की रस्म में पिता अपने बेटी को अलविदा कहकर एक नए जीवन की शुरुआत के लिए प्रोत्साहित करता है।
                  विदाई परंपरा में जहां एक तरफ माता-पिता अपनी बेटी को नए जीवन की शुरुआत करने के लिए नए घर भेजते हैं , वहीं वह बदले में अपनी बेटी द्वारा इतने सालों तक उसकी देखभाल करने के लिए धन्यवाद कहते हैं।
                  हालांकि, विदाई शादी (दुल्हन पक्ष के लिए) का अंतिम समारोह होता है लेकिन इस रस्म से जुड़े कई अर्थ और महत्व है। जिनके बारे में आज हम आपको विस्तार से बताएंगे।
                  जैसे ही दुल्हन अपने पति के परिवार का हिस्सा बनने के लिए अपने माता-पिता के घर से बाहर निकलती है, वह तीन बार अपने सिर पर मुट्ठी भर सिक्के और चावल फेंकने के लिए दरवाजे पर रुकती है। चावल और सिक्के फेंकने का कारण देवी लक्ष्मी (समृद्धि और धन की देवी) को प्रसन्न करना है और दुल्हन चाहती है कि उसका घर हमेशा समृद्ध रहे। बता दें कि सिक्के धन का प्रतीक है, जबकि चावल को स्वास्थ्य का प्रतीक माना जाता है।
                 इस रस्म का एक और मतलब यह है कि दुल्हन अपने माता-पिता द्वारा पालन पोषण के लिए उनका कर्ज चुकाया है। इसके साथ ही विदाई से पहले दूल्हा और दुल्हन को उनके रिश्तेदार देखते हैं और उन्हें गिफ्ट , पैसे और अपना आर्शीवाद देते हैं। इसके बाद दुल्हन के माता-पिता अपनी बेटी का हाथ पति को सौंपते हैं। माता-पिता अपने दामाद से उनकी बेटी की देखभाल और हर वक्त उसका साथ देने का वादा मांगते हैं। परंतु दामाद उनकी बेटी का कितना साथ देता है, यह उस व्यक्ति पर निर्भर करता है, जिसे आपने अपनी बेटी के लिए चुना है।
                   लोगों में रस्मों को यंत्रिकी तौर पर किए जाने का प्रावधान बहुत जोरों शोरों से दिखाई देता है। परंतु, उन रस्मों के पीछे छिपे हुए मायने एवम महत्व किसी को मालूम नहीं होते। वह। मायने एवम महत्व कहीं गौण होते नज़र आते हैं। इसका सबसे बड़ा एवम महत्वपूर्ण कारण यह है की माता पिता अपनी संतान को इन परंपराओं और रीतियों के महत्व एवम मायने न तो बताते हैं ना ही सिखाते हैं। यह परंपराएं असल में हमें सही मायने में जीवन के प्रति एवम अपने जीवन साथी के प्रति समर्पण के भाव को सिखाती है।
                   विदाई रस्म में दूसरा और अंतिम अनुष्ठान जोड़े को दूल्हे के घर की ओर जाने के लिए कार की ओर बढ़ते हुए देखता है। दुल्हन के भाई और चचेरे भाई गाड़ी को पीछे से धक्का देते हैं (या डोली उठाते हैं)। भाई अपने बहन की खुशियों की कामना करता है और नवविवाहित जोड़े को एक खुशहाल जीवन की ओर बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करता है। बता दें कि पहले के समय में भाई लोग दुल्हन को डोली में बैठाकर ससुराल छोड़ते थे। हालांकि, अब जमाना बदल गया है और अब डोली का चलन भी खत्म हो गया है।
                   आखिर में जैसे ही दूल्हे की गाड़ी आगे बढ़ती है, लड़की के परिवार वाले सड़क पर कुछ सिक्के फेंक कर विदाई की रस्म को पूरा करते हैं। माना जाता है कि ऐसा करने से दूल्हा-दुल्हन के नए जीवन की राह से सभी बुराइयां दूर हो जाती हैं।
                    इस समाज में इतनी बुराईयां केवल और केवल इसलिए अपने पैर फैला रही हैं, क्योंकि हमें हमारे घर परिवार से जीवन को समझने हेतु, रिश्तों को समझने हेतु उचित शिक्षा प्रदान नहीं की जाती। ज्यादातर मामलों में यह देखने को मिलता है कि लड़कियों को जबरदस्ती सहना और एडजस्ट करना सिखाया जाता है और लड़कों को अपना अधिकार जताना। अतः यही कमियां आगे चलकर रिश्तों को तहस नहस कर देती हैं।
                    यदि घर परिवारों में सही और न्याय करना एवम सही और न्याय हेतु खड़े होना सिखाया जाए तो मुझे नहीं लगता किसी परिवार में कभी कोई रिश्ता टूटेगा। परंतु, यह कहां तक सही है कि एक गलत करता जाए और दूसरा गलत सहता जाए।  यदि घर परिवार के बड़े बुज़ुर्ग स्वयं निष्पक्ष न्याय करें, और स्वयं से भी यदि गलती हो तो उसे स्वीकारने में कोई शर्म न समझकर उसे सुधारने का प्रयत्न करें। तब उनकी संतान भी उनका अनुसरण अवश्य करेगी। यही एक सबसे बड़ी कमी होती है, जो हमें समाज में देखने को मिलती है।
                     यही सब बातें जिस प्रकार भूमिका की मां ने भूमिका और उसके भाई को समझाई। उसी प्रकार हर माता पिता को अपनी संतान को अवश्य बतानी एवम समझानी चाहिए। ज्यादातर मामलों में लोक स्वार्थवश केवल अपना ही पक्ष एवम अपने ही फायदे की बातें अपनी संतान को बताते हैं। जो कि कदापि उचित नहीं है। इसीलिए कहा जाता है न कि "हम बदलेंगे, युग बदलेगा, हम सुधरेंगे, युग सुधरेगा।

#30 days फेस्टिवल / रिचुअल कम्पटीशन

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4 Comments

Bahut sundar rachna 👍🌺

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Swati Sharma

16-Nov-2022 09:22 PM

Apka hardik aabhar 🙏🏻💐

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Gunjan Kamal

16-Nov-2022 10:17 AM

👌👏🙏🏻

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Swati Sharma

16-Nov-2022 11:10 AM

,🙏🏻😇🙏🏻

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